आइये संवेदनाओँ को जगायेँ
>> रविवार, नवंबर 21, 2010
मित्रोँ आज की भागदौड़ की जिन्दगी मेँ हमारी संवेदनायेँ मर गयी हैँ या मुर्छित हो गयी हैँ,हर व्यक्ति सिर्फ अपने लिये जी रहा है,संवेदना क्या है,अगर आप भयंकर सर्दी मेँ गर्म स्वेटर मफलर मेँ लिपटे हैँ और आप के सामने से कोई छोटी बच्ची फटा पुराना पतला सा फ्राक पहने सर पर बोझ ढोती नजर आ जाये और आप के दिल मेँ कुछ न कचोटे तो आप की संवेदना मर चुकी है,इस पर लोग कहते हैँ कि क्या किसी एक आदमी के लिये यह सम्भव है कि वह सारे संसार के गरीबोँ को भोजन वस्त्र उपलब्ध करा सके,नहीँ यह सम्भव नहीँ है लेकिन एक शिक्षित व्यक्ति होने के कारण हमारा कर्तव्य है कि समाज मेँ ऐसी व्यवस्था बनाने मेँ सहयोग देँ जिसमेँ हर व्यक्ति सम्मान के साथ अपनी न्यूनतम आवश्यकताओँ की पूर्ति कर सके,पान.सुर्ती,गुटका,बीयर,शराब,सिगरेट,बीड़ी का सेवन स्वयं न करेँ और दूसरोँ को छोड़ने के लिये प्रेरित करेँ,शराब की बिक्री बढ़ा कर अधिक राजस्व कमाने वाली सरकार की नीति का विरोध करेँ,गरीब से गरीब आदमी के भी मानवाधिकारोँ का सम्मान करेँ,यदि हम भोजन की चिन्ता से उबर चुके हैँ तो हमारा कर्तव्य है कि समाज को बेहतर बनाने के लिये कुछ प्रयास करेँ,यदि हमारी शिक्षा का लाभ समाज को न मिले तो हमारी शिक्षा व्यर्थ है,सही सोच के बिना हम दो पैर वाले जानवर ही हैँ क्योँकि मनुष्य वही है जो मनन करे,विचार करे अन्यथा मानव और पशु मेँ कोई अन्तर नहीँ है,आइये सब लोग मिल कर एक बेहतर समाज बनायेँ,अपनी संवेदनाओँ को जगायेँ।
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