मेरी डायरी से
>> रविवार, नवंबर 21, 2010
साथियोँ! पढ़ने मेँ मेरी रुचि बचपन से ही रही है,इसके साथ ही अब मैँ किसी तथ्य की सत्यता का पता लगाने के लिये मूल श्रोतोँ का अध्धयन करना ही उचित समझता हूँ जैसे अयोध्या विवाद मेँ सच्चाई जानने के लिये हमेँ बाबर लिखित बाबरनामा पढ़ना होगा।मेरे निजी पुस्तकालय मेँ बहुत सी पुस्तकेँ हैँ,इस संग्रह मेँ दो पुस्तकेँ अँग्रेजोँ के समय मे प्राइमरी विद्यालयोँ मेँ पढ़ाई जाने वाली हिन्दी की पुस्तकेँ हैँ।आज अपनी डायरी से एक कविता लिख रहा हूँ.कविता किसके द्वारा रचित है अगर आप लोगोँ को पता हो तो अवश्य बतायेँ,यह कविता मुझे बहुत पसन्द है। कितने जिस्मोँ पर नहीँ आज भी कपड़ा कोई,इस समस्या पर तो आयोग न बैठा कोई।बात कुर्सी की बहुत गर्म है चौराहोँ पर डूबते गाँव की करता नहीँ चर्चा कोई।चोर बनता नहीँ बच्चा तो क्या बनता,जब खिलौना नहीँ बाजार मेँ सस्ता कोई।इस नये दौर के लोगोँ को दिखाने के लिये,दर्द पर डाल दो मुस्कान का परदा कोई।यूँ भटकती हुई मिलती है गरीबी अक्सर,भीड़ भरे शहर मेँ जैसे अन्धा कोई।जब तलक भूख का उपचार न होगा चेतन,पाठशाला मेँ न पढ़ पायेगा बच्चा कोई।(सधन्यवाद)
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